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इ॒मं घा॑ वी॒रो अ॒मृतं॑ दू॒तं कृ॑ण्वीत॒ मर्त्य॑: । पा॒व॒कं कृ॒ष्णव॑र्तनिं॒ विहा॑यसम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imaṁ ghā vīro amṛtaṁ dūtaṁ kṛṇvīta martyaḥ | pāvakaṁ kṛṣṇavartaniṁ vihāyasam ||

पद पाठ

इ॒मम् । घ॒ । वी॒रः । अ॒मृत॑म् । दू॒तम् । कृ॒ण्वी॒त॒ । मर्त्यः॑ । पा॒व॒कम् । कृ॒ष्णऽव॑र्तनिम् । विऽहा॑यसम् ॥ ८.२३.१९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:19 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:19


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शिव शंकर शर्मा

वही पूज्य है, यह आज्ञा देते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (वीरः+मर्त्यः) धर्मवीर पुरुष (इमम्+घ) इसी परमात्मा को (कृण्वीत) उपास्यदेव बनावें, जो (अमृतम्) सदा एकरस मरणरहित है (दूतम्) अन्तःकरण में ज्ञानादि सन्देश पहुँचानेवाला (पावकम्) शोधक (कृष्णवर्तनिम्) आकर्षणयुक्त सूर्य्यादिकों का प्रवर्तक (विहायसम्) और महान् है ॥१९॥
भावार्थभाषाः - जिस हेतु परमात्मा ही सबका चालक और धारक है, अतः उसी की पूजा प्रार्थना करो, यह उपदेश इससे देते हैं ॥१९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वीरः, मर्त्यः) वीरमनुष्य=राजा को उचित है कि वह जो (अमृतम्) मृत्यु से नहीं डरता (पावकम्) तथा सब जनों को पाप से निवर्तन करने में समर्थ (कृष्णवर्तनिम्) जिसका व्यापार सबके मन को आकर्षित करता है (विहायसम्) जो तेज में सबसे अधिक है, ऐसे मनुष्य को (दूतम्) आपत्तिनिवारक शूरपति (कृण्वीत) बनावे ॥१९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में यह वर्णन किया है जो विद्वान् योद्धा पाँच क्लेशों में से अभिनिवेश=मृत्यु के त्रास से सर्वथा रहित है अर्थात् जिसको मृत्यु का भय नहीं है, उसी का अपूर्ण कर्म=साहस प्रजाजनों को अपनी ओर खेंचता है, अन्यों का नहीं ॥१९॥ तात्पर्य्य यह है कि “नाकृत्वा दारुणं कर्म श्रीरुत्पद्यते क्वचित्” इस वाक्यानुसार जो एक बार भी भूकम्प के समान भयानक पापों को कम्पायमान नहीं कर देता, वह श्री=शोभा, लक्ष्मी तथा ऐश्वर्य्य को कदापि प्राप्त नहीं हो सकता, इसलिये न्यायकारी ईश्वरोपासक पुरुषों को उचित है कि उक्त प्रकार के साहसी योद्धाओं को अपना संरक्षक बनावें, ताकि उनके यज्ञों में विघ्न न हों ॥१९॥
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शिव शंकर शर्मा

स एव पूज्य इत्याज्ञापयति।

पदार्थान्वयभाषाः - वीरो मर्त्यः। इमं+घ=सर्वत्र विद्यमानमिममीशमेव स्वोपासनीयम्। कृण्वीत=कुर्वीत। अमृतम्। दूतम्=विज्ञानादिसन्देशवाहकम्। पावकम्=शोधकम्। कृष्णवर्तनिम्=कृष्णानामाकर्षकाणां सूर्य्यादीनां प्रवर्तकम्। पुनः। विहायसम्=महान्तम् ॥१९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वीरः, मर्त्यः) यः वीरो मनुष्यः=राजा सः (अमृतम्) मृत्युभयरहितम् (पावकम्) पापानां शोधकम् (कृष्णवर्तनिम्) कर्षणयुक्तव्यापारम् (विहायसम्) तेजोभिर्महान्तम् (दूतम्, कृण्वीत) आपत्तिनिवारकं शूरपतिं कुर्यात् ॥१९॥